पुरी का श्री जगन्नाथ मंदिर पूर्वी भारत के ओडिशा राज्य के पुरी शहर में स्थित है। यह हिन्दुओं के चार धामों में एक है और भगवान विष्णु के अवतार भगवान जगन्नाथ (श्रीकृष्ण) को समर्पित है।
समुद्र तट के निकट स्थित इस भव्य मंदिर को “पुरुषोत्तम पीठ” भी कहा जाता है। इसकी 214 फुट ऊँची आकर्षक पत्थर की इमारत दूर से ही दिखाई देती है।
अति प्राचीन और पवित्र होने के साथ-साथ यह मंदिर कई रहस्यमय तथ्यों के कारण भी जाना जाता है।
जगन्नाथ मंदिर का इतिहास 12वीं सदी से सम्बंधित है, जब गंगा वंश के राजा अनंतवर्मन चोडगंग देव ने इसका निर्माण करवाया।
पुराणों में वर्णित कथा अनुसार राजा इन्द्रद्युम्न ने कृष्ण के दिव्य निर्देश पर यहाँ मंदिर बनवाकर स्वयं शिला से तीनों प्रतिमाएँ निर्मित करवाई थीं।
वर्तमान मंदिर का निर्माण 1130 ई. के आसपास माना जाता है।
सदियों में इस पर अनेक आक्रमण हुए, मगर जनश्रुति है कि मंदिर की आत्मा (देवताओं के “ब्रहम पदार्थ” रूपी हृदय) को पुजारियों ने हर बार सुरक्षित निकालकर बचा लिया।
आज भी हर 12 से 19 वर्ष में लकड़ी की भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की मूर्तियाँ बदल दी जाती हैं और उनमें पिछले मूर्तियों से एक रहस्यमयी पदार्थ नया रूप देकर स्थानांतरित किया जाता है।
कहा जाता है यह पदार्थ भगवान कृष्ण का धड़कता हृदय है जो पीढ़ी-दर-पीढ़ी हस्तांतरित हो रहा है।
किसी को नहीं पता कि यह वास्तव में क्या है, क्योंकि हर नवकलेवर (मूर्ति परिवर्तन) के समय रात में बिजली बंद कर गुप्त रीति से ही यह क्रिया होती है।
जगन्नाथ मंदिर कलिंग स्थापत्य कला का अद्वितीय नमूना है।
मंदिर चार भागों में विभक्त है –
मुख्य शिखर 214 फीट ऊँचा है जिस पर स्वर्णकलश और सुदर्शन चक्र स्थापित है।
मंदिर के चारों ओर 20 फीट ऊँची परकोटा है।
सिंहद्वार (मुख्य प्रवेश) सहित चार विशाल द्वार हैं जिन पर नक्काशीदार मूर्तियाँ हैं।
मंदिर के ऊपर लगा सुदर्शन चक्र (नीलचक्र) दूर से ही दिखता है।
रोचक बात यह है कि इस चक्र को आप पुरी शहर में कहीं भी हों, तो ऐसा लगता है जैसे वह आपकी ओर ही मुख किये हुए है।
यह एक वास्तुकौशल है कि चक्र का ओरिएंटेशन ऐसा है कि हर दिशा से वह सामने प्रतीत होता है।
मंदिर परिसर में कई छोटे मंदिर हैं और एक विशाल रसोईघर (अन्नक्षेत्र) है जिसे दुनिया का सबसे बड़ा रसोईघर कहा जाता है –
यहाँ 500 रसोइए और 300 सहयोगी मिलकर प्रतिदिन लाखों श्रद्धालुओं हेतु महाप्रसाद पकाते हैं।
पुरी जगन्नाथ मंदिर से कई रहस्यमयी घटनाएँ जुड़ी हैं:
मंदिर के शिखर पर रोज़ बदला जाने वाला विशाल कपड़े का ध्वज (पटिटा) हवा की दिशा के विपरीत लहराता है।
सामान्यतः झंडा हवा के साथ उड़ता है, पर जगन्नाथ मंदिर पर हवा पूर्व से चले या पश्चिम से – पताका सदैव उल्टी दिशा में ही फहराती दिखती है।
यह अद्भुत दृश्य वैज्ञानिकों को हैरान करता है।
मंदिर के मुख्य गुंबद की छाया दोपहर के समय ज़मीन पर नहीं दिखाई देती।
इतनी ऊँची इमारत होने पर भी छाया का ज़मीन पर न पड़ना अपने-आप में आश्चर्यजनक बात है।
कुछ मानते हैं कि वास्तुकार ने इसे ऐसी ऊँचाई और कोण पर बनाया है कि दोपहर की छाया मंदिर की आधार-रचना पर ही पड़कर विलीन हो जाती है।
यह भी कहा जाता है कि जगन्नाथ मंदिर के शिखर के ऊपर से न कोई पक्षी उड़ता है, न कोई विमान जाता है।
मंदिर के शिखर को शायद पक्षी पवित्र मान दूरी रखते हैं – या संभव है कि इसके ऊँचे शिखर और भौगोलिक विद्युत चुंबकीय क्षेत्र के कारण पक्षी स्वयं दूर रहते हों।
मुख्य सिंहद्वार से अंदर प्रवेश करते ही बंगाल की खाड़ी की लहरों का शोर सुनना बंद हो जाता है, जबकि बाहर रहते वह स्पष्ट सुनाई देता है।
मंदिर की स्थापत्य बनावट ऐसी है कि भीतर एक अलौकिक शांति अनुभव होती है और समुद्र-तट पर होते हुए भी लहरों की ध्वनि कानों तक नहीं आती।
जगन्नाथ मंदिर के महाप्रसाद (भोग) के संबंध में मान्यता है कि प्रतिदिन जितने भी भक्त आएं, सबको भोजन मिल जाएगा और फिर भी न तो प्रसाद की कमी होगी, न बचत बर्बाद होगी।
मंदिर की रसोई में मिट्टी के 7 बर्तन एक-दूसरे के ऊपर रखकर प्रसाद पकाया जाता है और आश्चर्य यह कि सबसे ऊपर रखे बर्तन का प्रसाद पहले पकता है, फिर क्रमशः नीचे की ओर एक-एक करके पकता जाता है।
हर 12-19 साल में जब देवताओं की नई मूर्तियाँ बनती हैं, तब पुरानी मूर्तियों से ब्रह्म तत्व निकालकर नई में डाला जाता है।
यह क्रिया पूर्णतः गोपनीय रहती है – यहां तक कि उस समय पूरी पुरी नगरी की बिजली काट दी जाती है और सिर्फ़ चयनित दैत्पतियों (सेवकों) को ही गर्भगृह में रहने दिया जाता है।
जगन्नाथ पुरी की ख्याति कई आयामों में फैली है।
एक ओर यह आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित चार धामों में पूर्व दिशा का धाम है जिसे मोक्ष प्रदान करने वाला तीर्थ माना जाता है।
तो दूसरी ओर यहाँ की रथयात्रा विश्वप्रसिद्ध महोत्सव है जिसमें लाखों लोग विशाल रथों को खींचकर भगवान के दर्शन करते हैं।
जगन्नाथ मंदिर की नियमित चमत्कार कथाएँ – जैसे ध्वज, छाया, पक्षी, प्रसाद से जुड़े रहस्य – जनमानस में कौतूहल और श्रद्धा पैदा करते हैं।
इसके अलावा जगन्नाथ महाप्रसाद ओड़िशा समेत पूरे भारत में पूजनीय है; माना जाता है इस प्रसाद को ग्रहण करने से महान पुण्य मिलता है।
इतना ही नहीं, यह मंदिर सामाजिक दृष्टि से भी चर्चा में रहा है – केवल सनातनी हिंदुओं को प्रवेश की अनुमति और इंदिरा गांधी जैसी राजनेता को विदेशी पति के कारण न घुसने देना इतिहास में दर्ज घटनाएं हैं।
कुल मिलाकर अपनी आध्यात्मिक महत्ता, सांस्कृतिक उत्सवों और रहस्यमय किस्सों के कारण जगन्नाथ मंदिर जगतप्रसिद्ध है।
रथयात्रा यहाँ का सबसे बड़ा उत्सव है, जो आषाढ़ शुक्ल द्वितीया को आरंभ होता है और आठ दिनों तक चलता है।
तीन विशाल रथों में भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा नगर भ्रमण को निकलते हैं – करोड़ों भक्त इस दृश्य के साक्षी होते हैं।
इसके अलावा स्नान पूर्णिमा, नीलाद्री बिहारी, बसंत पंचमी आदि उत्सव मनाए जाते हैं।
रोज़ मंदिर में मंगला आरती से दिन शुरू होता है और पाहुड़ा (रात्रि विश्राम) तक सैकड़ों सेवाएं होती हैं।
दिन में 56 भोग लगाए जाते हैं, जो बाद में भक्तों में महाप्रसाद के रूप में वितरित होते हैं।
विशेष अवसरों पर “सोन वेदी” पर स्वर्ण आभूषणों से सजे भगवान के दर्शन होत हैं।
जगन्नाथ मंदिर के पुजारी और सेवायत अपना-अपना कर्तव्य पारंपरिक रीति से निभाते हैं – यह अनुष्ठान प्रणाली स्वयं एक अध्ययन का विषय है।
वैज्ञानिक और इतिहासविद इन रहस्यों की तार्किक वजह तलाशने का प्रयास करते रहे हैं।
ध्वज का हवा के विरुद्ध लहराना – इसे कुछ लोग वायु के दबाव (एयर प्रेशर) की विशेष परिस्थिति बताते हैं, क्योंकि सागर के समीप दिन में और रात में हवा की दिशाएँ विपरीत हो जाती हैं।
किन्तु ऐसा सटीक हर समय होना असामान्य है, इसलिए यह अब भी रहस्य माना जाता है।
छाया न दिखने का रहस्य संभवतः शिखर की संरचना और सूर्य की किरणों के कोण से जुड़ा है – दोपहर में छाया भवन के आधार पर ही पड़कर अदृश्य हो जाती है।
पक्षियों का न उड़ना भी पूरी तरह सत्य नहीं (कभी-कभार उड़ते दिख जाते हैं) , मगर सम्भवतः मंदिर की ऊंचाई और ऊपर सुदर्शन चक्र की चमक उन्हें भ्रमित करती है।
प्रसाद पकने की प्रक्रिया (7 बर्तनों वाला) का कोई सटीक वैज्ञानिक स्पष्टीकरण नहीं है – यह निश्चित ही पारम्परिक रसोइयों के कौशल और कुछ भौतिक नियमों का मिश्रण होगा, फिर भी उलटे क्रम में पकना सामान्य भौतिकी को चुनौती देता है।
पुरी यात्रा कर चुके श्रद्धालु बताते हैं कि जगन्नाथ मंदिर परिसर में प्रवेश करते ही उनके मन में गहरा आध्यात्मिक भाव जागता है।
समुद्र की लहरों का शोर गायब होने से जो शांति मिलती है, वह उन्हें रोमांचित करती है।
कई भक्तों ने व्यक्तिगत अनुभव साझा किए हैं – जैसे एक भक्त ने बताया कि जब वे अंदर थे, तो उन्हें लगा मानो समय थम गया है और बाहर निकलते ही फिर से लहरों की आवाज़ सुनाई देने लगी, यह उन्हें किसी दिव्य लोक से वापस आने जैसा लगा।
रथयात्रा में शामिल भक्त बताते हैं कि जब वे भारी रथ को रस्सों से खींचते हैं, तो मानव-शक्ति से कई गुना बल आ जाता है – मानो स्वयं भगवान गति दे रहे हों।
सबसे सामान्य अनुभव है ध्वज का चमत्कार – कई लोगों ने अलग-अलग दिशाओं से वीडियो बनाकर देखा कि झंडा विपरीत ही उड़ रहा है, इससे उनकी भगवान में आस्था और बढ़ गई।
कुल मिलाकर, पुरी के जगन्नाथ मंदिर में आकर भक्त एक ओर अपने आराध्य के साक्षात दर्शन से धन्य होते हैं, तो दूसरी ओर इन अद्भुत रहस्यों को महसूस कर उनका हृदय “हरे कृष्ण, जगन्नाथ स्वामी” के जयकारों से भर उठता है।
पुरी का श्री जगन्नाथ मंदिर पूर्वी भारत के ओडिशा राज्य के पुरी शहर में स्थित है। यह हिन्दुओं के चार धामों में एक है और भगवान विष्णु के अवतार भगवान जगन्नाथ (श्रीकृष्ण) को समर्पित है।
समुद्र तट के निकट स्थित इस भव्य मंदिर को “पुरुषोत्तम पीठ” भी कहा जाता है। इसकी 214 फुट ऊँची आकर्षक पत्थर की इमारत दूर से ही दिखाई देती है।
अति प्राचीन और पवित्र होने के साथ-साथ यह मंदिर कई रहस्यमय तथ्यों के कारण भी जाना जाता है।
जगन्नाथ मंदिर का इतिहास 12वीं सदी से सम्बंधित है, जब गंगा वंश के राजा अनंतवर्मन चोडगंग देव ने इसका निर्माण करवाया।
पुराणों में वर्णित कथा अनुसार राजा इन्द्रद्युम्न ने कृष्ण के दिव्य निर्देश पर यहाँ मंदिर बनवाकर स्वयं शिला से तीनों प्रतिमाएँ निर्मित करवाई थीं।
वर्तमान मंदिर का निर्माण 1130 ई. के आसपास माना जाता है।
सदियों में इस पर अनेक आक्रमण हुए, मगर जनश्रुति है कि मंदिर की आत्मा (देवताओं के “ब्रहम पदार्थ” रूपी हृदय) को पुजारियों ने हर बार सुरक्षित निकालकर बचा लिया।
आज भी हर 12 से 19 वर्ष में लकड़ी की भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की मूर्तियाँ बदल दी जाती हैं और उनमें पिछले मूर्तियों से एक रहस्यमयी पदार्थ नया रूप देकर स्थानांतरित किया जाता है।
कहा जाता है यह पदार्थ भगवान कृष्ण का धड़कता हृदय है जो पीढ़ी-दर-पीढ़ी हस्तांतरित हो रहा है।
किसी को नहीं पता कि यह वास्तव में क्या है, क्योंकि हर नवकलेवर (मूर्ति परिवर्तन) के समय रात में बिजली बंद कर गुप्त रीति से ही यह क्रिया होती है।
जगन्नाथ मंदिर कलिंग स्थापत्य कला का अद्वितीय नमूना है।
मंदिर चार भागों में विभक्त है –
मुख्य शिखर 214 फीट ऊँचा है जिस पर स्वर्णकलश और सुदर्शन चक्र स्थापित है।
मंदिर के चारों ओर 20 फीट ऊँची परकोटा है।
सिंहद्वार (मुख्य प्रवेश) सहित चार विशाल द्वार हैं जिन पर नक्काशीदार मूर्तियाँ हैं।
मंदिर के ऊपर लगा सुदर्शन चक्र (नीलचक्र) दूर से ही दिखता है।
रोचक बात यह है कि इस चक्र को आप पुरी शहर में कहीं भी हों, तो ऐसा लगता है जैसे वह आपकी ओर ही मुख किये हुए है।
यह एक वास्तुकौशल है कि चक्र का ओरिएंटेशन ऐसा है कि हर दिशा से वह सामने प्रतीत होता है।
मंदिर परिसर में कई छोटे मंदिर हैं और एक विशाल रसोईघर (अन्नक्षेत्र) है जिसे दुनिया का सबसे बड़ा रसोईघर कहा जाता है –
यहाँ 500 रसोइए और 300 सहयोगी मिलकर प्रतिदिन लाखों श्रद्धालुओं हेतु महाप्रसाद पकाते हैं।
पुरी जगन्नाथ मंदिर से कई रहस्यमयी घटनाएँ जुड़ी हैं:
मंदिर के शिखर पर रोज़ बदला जाने वाला विशाल कपड़े का ध्वज (पटिटा) हवा की दिशा के विपरीत लहराता है।
सामान्यतः झंडा हवा के साथ उड़ता है, पर जगन्नाथ मंदिर पर हवा पूर्व से चले या पश्चिम से – पताका सदैव उल्टी दिशा में ही फहराती दिखती है।
यह अद्भुत दृश्य वैज्ञानिकों को हैरान करता है।
मंदिर के मुख्य गुंबद की छाया दोपहर के समय ज़मीन पर नहीं दिखाई देती।
इतनी ऊँची इमारत होने पर भी छाया का ज़मीन पर न पड़ना अपने-आप में आश्चर्यजनक बात है।
कुछ मानते हैं कि वास्तुकार ने इसे ऐसी ऊँचाई और कोण पर बनाया है कि दोपहर की छाया मंदिर की आधार-रचना पर ही पड़कर विलीन हो जाती है।
यह भी कहा जाता है कि जगन्नाथ मंदिर के शिखर के ऊपर से न कोई पक्षी उड़ता है, न कोई विमान जाता है।
मंदिर के शिखर को शायद पक्षी पवित्र मान दूरी रखते हैं – या संभव है कि इसके ऊँचे शिखर और भौगोलिक विद्युत चुंबकीय क्षेत्र के कारण पक्षी स्वयं दूर रहते हों।
मुख्य सिंहद्वार से अंदर प्रवेश करते ही बंगाल की खाड़ी की लहरों का शोर सुनना बंद हो जाता है, जबकि बाहर रहते वह स्पष्ट सुनाई देता है।
मंदिर की स्थापत्य बनावट ऐसी है कि भीतर एक अलौकिक शांति अनुभव होती है और समुद्र-तट पर होते हुए भी लहरों की ध्वनि कानों तक नहीं आती।
जगन्नाथ मंदिर के महाप्रसाद (भोग) के संबंध में मान्यता है कि प्रतिदिन जितने भी भक्त आएं, सबको भोजन मिल जाएगा और फिर भी न तो प्रसाद की कमी होगी, न बचत बर्बाद होगी।
मंदिर की रसोई में मिट्टी के 7 बर्तन एक-दूसरे के ऊपर रखकर प्रसाद पकाया जाता है और आश्चर्य यह कि सबसे ऊपर रखे बर्तन का प्रसाद पहले पकता है, फिर क्रमशः नीचे की ओर एक-एक करके पकता जाता है।
हर 12-19 साल में जब देवताओं की नई मूर्तियाँ बनती हैं, तब पुरानी मूर्तियों से ब्रह्म तत्व निकालकर नई में डाला जाता है।
यह क्रिया पूर्णतः गोपनीय रहती है – यहां तक कि उस समय पूरी पुरी नगरी की बिजली काट दी जाती है और सिर्फ़ चयनित दैत्पतियों (सेवकों) को ही गर्भगृह में रहने दिया जाता है।
जगन्नाथ पुरी की ख्याति कई आयामों में फैली है।
एक ओर यह आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित चार धामों में पूर्व दिशा का धाम है जिसे मोक्ष प्रदान करने वाला तीर्थ माना जाता है।
तो दूसरी ओर यहाँ की रथयात्रा विश्वप्रसिद्ध महोत्सव है जिसमें लाखों लोग विशाल रथों को खींचकर भगवान के दर्शन करते हैं।
जगन्नाथ मंदिर की नियमित चमत्कार कथाएँ – जैसे ध्वज, छाया, पक्षी, प्रसाद से जुड़े रहस्य – जनमानस में कौतूहल और श्रद्धा पैदा करते हैं।
इसके अलावा जगन्नाथ महाप्रसाद ओड़िशा समेत पूरे भारत में पूजनीय है; माना जाता है इस प्रसाद को ग्रहण करने से महान पुण्य मिलता है।
इतना ही नहीं, यह मंदिर सामाजिक दृष्टि से भी चर्चा में रहा है – केवल सनातनी हिंदुओं को प्रवेश की अनुमति और इंदिरा गांधी जैसी राजनेता को विदेशी पति के कारण न घुसने देना इतिहास में दर्ज घटनाएं हैं।
कुल मिलाकर अपनी आध्यात्मिक महत्ता, सांस्कृतिक उत्सवों और रहस्यमय किस्सों के कारण जगन्नाथ मंदिर जगतप्रसिद्ध है।
रथयात्रा यहाँ का सबसे बड़ा उत्सव है, जो आषाढ़ शुक्ल द्वितीया को आरंभ होता है और आठ दिनों तक चलता है।
तीन विशाल रथों में भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा नगर भ्रमण को निकलते हैं – करोड़ों भक्त इस दृश्य के साक्षी होते हैं।
इसके अलावा स्नान पूर्णिमा, नीलाद्री बिहारी, बसंत पंचमी आदि उत्सव मनाए जाते हैं।
रोज़ मंदिर में मंगला आरती से दिन शुरू होता है और पाहुड़ा (रात्रि विश्राम) तक सैकड़ों सेवाएं होती हैं।
दिन में 56 भोग लगाए जाते हैं, जो बाद में भक्तों में महाप्रसाद के रूप में वितरित होते हैं।
विशेष अवसरों पर “सोन वेदी” पर स्वर्ण आभूषणों से सजे भगवान के दर्शन होत हैं।
जगन्नाथ मंदिर के पुजारी और सेवायत अपना-अपना कर्तव्य पारंपरिक रीति से निभाते हैं – यह अनुष्ठान प्रणाली स्वयं एक अध्ययन का विषय है।
वैज्ञानिक और इतिहासविद इन रहस्यों की तार्किक वजह तलाशने का प्रयास करते रहे हैं।
ध्वज का हवा के विरुद्ध लहराना – इसे कुछ लोग वायु के दबाव (एयर प्रेशर) की विशेष परिस्थिति बताते हैं, क्योंकि सागर के समीप दिन में और रात में हवा की दिशाएँ विपरीत हो जाती हैं।
किन्तु ऐसा सटीक हर समय होना असामान्य है, इसलिए यह अब भी रहस्य माना जाता है।
छाया न दिखने का रहस्य संभवतः शिखर की संरचना और सूर्य की किरणों के कोण से जुड़ा है – दोपहर में छाया भवन के आधार पर ही पड़कर अदृश्य हो जाती है।
पक्षियों का न उड़ना भी पूरी तरह सत्य नहीं (कभी-कभार उड़ते दिख जाते हैं) , मगर सम्भवतः मंदिर की ऊंचाई और ऊपर सुदर्शन चक्र की चमक उन्हें भ्रमित करती है।
प्रसाद पकने की प्रक्रिया (7 बर्तनों वाला) का कोई सटीक वैज्ञानिक स्पष्टीकरण नहीं है – यह निश्चित ही पारम्परिक रसोइयों के कौशल और कुछ भौतिक नियमों का मिश्रण होगा, फिर भी उलटे क्रम में पकना सामान्य भौतिकी को चुनौती देता है।
पुरी यात्रा कर चुके श्रद्धालु बताते हैं कि जगन्नाथ मंदिर परिसर में प्रवेश करते ही उनके मन में गहरा आध्यात्मिक भाव जागता है।
समुद्र की लहरों का शोर गायब होने से जो शांति मिलती है, वह उन्हें रोमांचित करती है।
कई भक्तों ने व्यक्तिगत अनुभव साझा किए हैं – जैसे एक भक्त ने बताया कि जब वे अंदर थे, तो उन्हें लगा मानो समय थम गया है और बाहर निकलते ही फिर से लहरों की आवाज़ सुनाई देने लगी, यह उन्हें किसी दिव्य लोक से वापस आने जैसा लगा।
रथयात्रा में शामिल भक्त बताते हैं कि जब वे भारी रथ को रस्सों से खींचते हैं, तो मानव-शक्ति से कई गुना बल आ जाता है – मानो स्वयं भगवान गति दे रहे हों।
सबसे सामान्य अनुभव है ध्वज का चमत्कार – कई लोगों ने अलग-अलग दिशाओं से वीडियो बनाकर देखा कि झंडा विपरीत ही उड़ रहा है, इससे उनकी भगवान में आस्था और बढ़ गई।
कुल मिलाकर, पुरी के जगन्नाथ मंदिर में आकर भक्त एक ओर अपने आराध्य के साक्षात दर्शन से धन्य होते हैं, तो दूसरी ओर इन अद्भुत रहस्यों को महसूस कर उनका हृदय “हरे कृष्ण, जगन्नाथ स्वामी” के जयकारों से भर उठता है।